लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 6

गाँधी का नीतिशास्त्र

(The Ethics of Gandhi)

 

प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।

अथवा
गांधीजी के आदर्श राज्य पर उनके विचारों का आलोचनात्मक वर्णन कीजिए। क्या ऐसा राज्य वास्तविकता में स्थापित किया जा सकता है?

उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर निम्नलिखित लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तरों को मिलाने पर पूर्ण होता है।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न

गांधीवाद के प्रेरणा स्रोतों को संक्षेप में समझाइये
अथवा
गांधीवादी दर्शन के स्त्रोत।

उत्तर -

गांधीवादी विचारधारा के सम्बन्ध में सर्वप्रथम विवाद का विषय यही है कि क्या गांधीवाद नाम की कोई वस्तु है? स्वयं गांधी जी ने 1996 में सांवली संघ में कहा था, "गांधीवाद नामक कोई वस्तु नहीं है। मैं अपने बाद कोई सम्प्रदाय नहीं छोड़ना चाहता। सत्य और अहिंसा उतने ही पुरातन हैं जितने की पर्वत। मैंने तो केवल इन दोनों को यथा सम्भव विस्तृत क्षेत्र में प्रयोग करने का प्रयत्न किया है.... आप इसे गांधीबाद न कहें, इसमें कोई वाद नहीं है।"

इस प्रकार यदि वाद से अभिप्राय किन्हीं सिद्धान्तों या मतों से है जो एक निश्चित सूत्र में पिरोये हुए हों तो निश्चित रूप से गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है। गांधी जी कभी भी अपने विचारों के बारे में पूर्णता का दावा नहीं करते थे। वे तो सदा सत्य और अहिंसा के साथ प्रयोग करते रहे और ऐसा करने में उनसे जो भी भूले हुईं उन्होंने उन भूलों को स्वीकार किया और उनसे सीखा। उन्होंने अपनी आत्मकथा को भी 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' (My Experiments with Truth) का नाम दिया है। गांधी जी ने अन्तिम रूप से या आगामी समय के लिए कोई मत प्रतिपादित नहीं किया और न वे यह चाहते थे कि उनके अनुयायियों के द्वारा उनका अनुसरण किया जाये। उन्होंने किसी प्रणाली का निर्माण नहीं किया और न ही किसी वाद का संस्थापन ही किया।

तो भी गांधी जी का एक निश्चित जीवन-दर्शन था। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जटिलता ओं के समाधान के लिए उनके कुछ विशेष सिद्धान्त एवं उनकी अपनी पद्धति थी। उनके इन सिद्धान्तों और उनकी कार्य पद्धति को ही सामूहिक रूप से 'गांधीवाद' के नाम से पुकारा जा सकता है। गांधीवाद की परिभाषा का प्रयत्न करते हुए डॉ० पी० एस० रमाया लिखते हैं, “गांधीवाद नीतियों, सिद्धान्तों, नियमों, आदेशों और निषेधों, आदि का सिद्धान्त ही नहीं, वरन् जीवन का एक रास्ता है। इनके द्वारा जीवन की समस्याओं के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण का प्रतिपादनया पुरातन दृष्टिकोण की पुनर्व्याख्या करते हुए आधुनिक समस्याओं के लिए पुरातन हल प्रस्तुतकिये गये हैं।"

गांधीवाद को प्रेरित करने वाले स्रोत 

इन स्रोतों को मूल रूप में दो भागों में बाँटा जा सकता है पूर्वी एवं पश्चिमी, पूर्वी स्रोतों में सर्वप्रथम उन पर अपनी माता के व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता और पिता की सादगी एवं सदाचार का अमिट प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपनी माता से वैष्णव हिन्दू धर्म के संस्कार प्राप्त किये। उनके जीवन और विचार पर अन्य प्रभावों में जैन और बौद्ध धर्म, गीता और उपनिषद्, भारत के विभिन्न साधु-सन्तों के उपदेश एवं प्रमुख रूप से जैन साधक श्री रामचन्द्रजी के सम्पर्क का उल्लेख किया जा सकता है। गांधीजी ने अपनी विचारधारा के मूल आधार सत्य और अहिंसा को जैन और बौद्ध दर्शन से ग्रहण किया था और गांधीजी ने अपने प्रथम चरित्र लेखक एक मिशनरी डोक को बताया था कि अहिंसक प्रतिकार की कल्पना मुझे सर्वप्रथम श्याम भटटू द्वारा रचित गुजराती कविता से सूझी थी, जिसका सांराश इस प्रकार था “यदि कोई तुम्हें पानी पिलाये और तुमने भी बदले में उसे पानी पिलाया, तो उसका कोई महत्व नहीं है। अपकार के ब दले उपकार करने में ही खूबी है।” भगवद्गीता ने अहिंसा और कर्म में गांधीजी के विश्वास को दृढ़ करने का कार्य किया। गांधीजी की विचारधारा के पश्चिमी स्रोतों में बाइबल विशेषतया उसके अध्याय 'पर्वत प्रवचन' (Sermon on the Mount ), तथा टालस्टॉय, रस्किन और थोरो की रचनाएँ हैं। गांधीजी ने 'पर्वत प्रवचन' वाले भाग में इस बात को ग्रहण किया कि “ अत्याचारी का प्रतिकार मत करो, वरन् जो तुम्हारे सीधे गाल पर चांटा मारे उसके सामने बायाँ गाल भी कर दो, अपने शत्रु से प्रेम करो।” गांधीजी ने 1896 में नेपाल जाते हुए रास्ते में अपने मित्र पोलक द्वारा दी गयी जॉन रस्किन की पुस्तक 'Unto this Last* को पढ़ा और वे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 'सर्वोदय' के नाम से इसका गुजराती में अनुवाद किया। इस पुस्तक से उन्होंने तीन बातें सीखीं-

(1) एक व्यक्ति का हित सभी व्यक्तियों के हित में निहित है।

(2) एक वकील के कार्य का भी उतना ही महत्व है जितना कि नाई के कार्य का, क्योंकि सभी व्यक्तियों को अपने कार्य से आजीविका प्राप्त करने का समान अधिकार है।

( 3 ) शारीरिक श्रम करने वाले किसान या कारीगर का जीवन ही वास्तविक जीवन है। गांधीजी ने रस्किन से प्रभावित होकर बुद्धि की अपेक्षा चरित्र पर अधिक बल दिया, आत्मिक बल को सर्वोच्च स्थान दिया, जीवन के राजनीतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में धर्म को महत्ता दी और पूँजीपतियों से यह अपेक्षा तथा आशा रखी कि वे मजदूरों के संरक्षक बनें और उनसे पितृ-तुल्य व्यवहार करें।

गांधीजी पर अमरीकन अराजकतावादी लेखक हेनरी डेविड थोरो का भी प्रभाव पड़ा। थोरो का सिद्धान्त था कि भलाई को बढ़ाने वाले सभी लोगों तथा संस्थाओं के साथ सहयोग एवं बुराई को प्रोत्साहित करने वालों के साथ असहयोग किया जाना चाहिए। थोरो मनुष्य की स्वाभाविक भलाई और राज्यहीन समाज के आदर्श में विश्वास रखता था और दास प्रथा के प्रश्न पर उसने अमरीकन सरकार के साथ निष्क्रिय और सक्रिय प्रतिकार के मत का समर्थन किया था। उसका विचार था कि दास प्रथा जैसे नैतिक प्रश्न पर राज्य की आज्ञा भंग कर कर विषयक कानून तोड़ा जाना चाहिए और इस सम्बन्ध में अहिंसा का पालन आवश्यक नहीं है। गांधीजी ने थोरो की विचारधारा को संशोधित करते हुए इस बात पर बल दिया कि सरकार के अनैतिक का नूनों का विरोध तो अवश्य किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा करते हुए हमारा व्यवहार अहिंसक ही होना चाहिए। थोरो की पुस्तक 'On the Duty of Civil Disobedience' ने उन पर पर्याप्त प्रभाव डाला।

गांधीजी पर रूसी लेखक टालस्टॉय की रचनाओं 'संक्षिप्त सुसमाचार' (Gospel in Brief), 'क्या करें' (What to do) तथा 'स्वर्ग तुम्हारे भीतर है' (The Kingdom of God is within You) ने भी प्रभाव डाला। इनमें से अन्तिम पुस्तक का उन पर विशेष और स्थायी प्रभाव पड़ा। इस पुस्तक के अध्ययन से पूर्व गांधीजी के मन में अहिंसा के सम्बन्ध में अनेक सन्देह थे। इस पुस्तक ने उन सभी सन्देहों का निराकरण कर दिया। उपर्युक्त विचारकों तथा उन की रचनाओं के अतिरिक्त गांधीजी पर कार्लायल की 'वीर पूजा' (Hero Worship) तथा हजरत मुहम्मद और उसके उत्तराधिकारियों के जीवन चरित्र का भी प्रभाव पड़ा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book